27 सितंबर, 2010

वंदेमातरम शब्द नहीँ,यह भारत माँ की पूजा है

वंदेमातरम शब्द नहीँ,यह भारत माँ की पूजा है

bharatma
विगत कई दिनोँ से मंच पर घमासान मचा हुआ है।कुछ नये लेखकोँ का आगमन हुआ है,तो कुछ पुराने लेखकोँ ने सत्य को पूरी तरह से उलझा दिया है।जिसको स्वयं मार्ग नहीँ मिला,वह मार्ग दिखाने चल पड़ा है और इन दिग्भम्रित लोगोँ ने पूरे मंच को ही दिग्भम्रित कर दिया है।जहाँ तक मेरा विचार है,सत्य मेँ जीने वाला सत्य के साथ प्रयोग नहीँ किया करता और जिसको परमपिता परमेश्वर का साक्षात्कार हो गया है,वह ब्लाँग नहीँ लिखा करता।चातक जी ने अपने आपको विधर्मी कहा है,सही बात है,यदि अन्याय और असत्य के विरुद्ध बोलना धर्म के विरुद्ध है तो मैँ भी विपरीतधर्मी होने के कारण विधर्मी हुआ और मुझे खुशी होगी,जब,मंच पर इस तरह के विधर्मियोँ की तादाद बढ़ती जाएगी।
चातक जी की हार्दिक इच्छा है कि मैँ वंदेमातरम के बारे मेँ कुछ लिखूँ और सौभागय से मैँ इस महामंत्र के बारे मेँ पहले ही कलम चला चुका हूँ।चातक जी के मार्गदर्शन कविता तकनीकि रुप से भी निखर गई है।इस बार की कविता मंच के समस्त राष्ट्रवादी मित्रोँ के प्रति समर्पित है।-

बेशक तुमने अपमान किया।खण्डित भारत का मान किया॥
यह वंदेमातरम सम्प्रदाय का परिचायक है,मान लिया॥
आओ,मै तुम्हे बताता हूँ,इस वंदेमातरम की सत्ता।
तुमको उसका भी ज्ञान नहीँ जो जान चुका पत्ता-पत्ता॥
जो ज्ञानशून्य भू पर बरसी,बन,शून्य-ज्ञान की रसधारा।
दशमलव दिया इसने तब,जब था बेसुध भूमण्डल सारा॥
जब तुमलोगोँ के पुरखोँ को ईमान का था कुछ भान नहीँ।
कच्चा ही बोटी खाते थे, वस्त्रोँ का भी था ज्ञान नहीँ।
जंगल-जंगल मेँ पत्थर ले, नंगे-अधनंगे फिरते थे।
सर्दी-गर्मी-वर्षा अपने उघरे तन पर ही सहते थे।।
तब वंदेमातरम के साधक, माँ चामुण्डा के आराधक।
अज्ञान तिमिर का जो नाशक,था ढूँढ़ लिया हमने पावक॥
मलमल के छोटे टुकड़े से, उन्मत्त गजोँ को बाँध दिया।
दुःशासन का पौरुष हारा, पट से पाञ्चाली लाद दिया॥
जब वंदेमातरम संस्कृति को था किसी सर्प ने ललकारा।
तब लगा अचानक ही चढ़ने जनमेजय के मख का पारा॥
यह वंदेमातरम उसी शक्तिशाली युग की शुभ गाथा है।
जिसके आगे भू के सारे नर का झुक जाता माथा है॥
इसका प्रथमाक्षर चार वेद,द्वितीयाक्षर देता दया,दान।
तृतीयाक्षर माँ के चरणोँ मेँ,अर्पित ऋषियोँ का तप महान॥
पञ्चम अक्षर रणभेरी है,अंतिम मारु का मृत्युनाद।
चिर उत्कीलित यह मंत्र मानवोँ की स्वतंत्रता का निनाद॥
जो स्वतंत्रता का चरम मंत्र,जो दीवानोँ की गायत्री।
जो महाकाल की परिभाषा,भारत माँ की जीवनपत्री॥
जो बलिदानोँ का प्रेरक है,जो कालकूट की प्याली है।
जो है पौरुष का बीजमंत्र, जिसकी देवी माँ काली है॥
जो पृथ्वीराज का क्षमादान, गोरी का खण्डित हुआ मान।
जो जौहर की हर ज्वाला है, जो आत्मत्याग की हाला है॥
जिसमेँ ऋषियोँ की वाणी है, जो शुभदा है, कल्याणी है।
जो राष्ट्र-गगन का इन्द्रधनुष,उच्चारण मंगलकारी है॥
जिसमेँ दधीचि की हड्डी है, हाँ,हाँ जिसमेँ खुद चण्डी है।
जो पुरुषोत्तम का तीर धनुष,हाँ जिसमेँ हैँ नल,नील,नहुष॥
राणा-प्रताप का भाला है, विष कालकूट ने डाला है।
जो प्रलय मचाने वाला है,इसको विद्युत ने पाला है॥
इसमेँ शंकर का दर्शन है, जिसका भावार्थ समर्पण है।
जो बजरंगी का ब्रम्हचर्य, जो आत्मबोध का दर्पण है॥
यह वागीश्वरी का सौम्य तेज,अम्बर से झरता झर-झर है।
यह चामुण्डा के हाँथो मेँ शोणित छलकाता खप्पर है॥
जो मनुपुत्रोँ के लिये स्वर्ग, सर्वात्मवाद की धुरी रही।
जिसमेँ देवोँ की दैविकता अमृत बरसाती सदा रही॥
उस ऐक्य मंत्र के ताने को,तेजस्वी गैरिक बाने को।
उर्जा की दाहक गर्मी को, उस मानवता को,नरमी को॥
गंगाधर के शिव स्वपनोँ मेँ, नेताजी के बलि भवनोँ मेँ।
गौतम के मंगल कथनोँ मेँ, मीरा के सुन्दर भजनोँ मेँ॥
यह किसने आग लगाया है, जग को उल्टा बतलाया है॥
यह किसने आग लगाया है, जग को उल्टा बतलाया है॥
यह वंदेमातरम शब्द नहीँ यह भारत माँ की पूजा है।
माँ के माथे की बिँदिया हैश्रृंगार न कोई दूजा है॥
इसमेँ तलवार चमकती है मर्दानी रानी झाँसी की।
इसमेँ बलिदान मचलता है,दिखती हैँ गाँठे फाँसी की॥
मंगल पाण्डे की यादेँ हैँ।शिवराज नृपति की साँसेँ हैँ॥
यह बिस्मिल के भगवान वेद।यह लौह पुरुष का रक्त स्वेद॥
यह भगत सिँह की धड़कन है।आजाद भुजा की फड़कन है॥
यह गंगाधर की गीता है, चित्तू पाण्डे सा चीता है।
जलियावाला की साखी है।हुमायूँ बाहु की राखी है॥
यह मदनलाल की गोली है।मस्तानी ब्रज की होली है॥
यह चार दिनोँ के जीवन मेँ चिर सत्य,सनातन यौवन है।
यह बलिदानोँ की परम्परा अठ्ठारह सौ सत्तावन है॥
हिन्दू,मुस्लिम,सिख,ईसा के बन्दे सब इसको गाते हैँ।
सब इसे सलामी देते हैँ,इसको सुन सब हर्षाते हैँ॥
लेकिन कुछ राष्ट्रद्रोहियोँ ने है इसका भी अपमान किया।
इस राष्ट्रमंत्र को इन लोगोँ ने सम्प्रदाय का नाम दिया॥
जाओ,जाकर पैगम्बर से पूछो तो क्या बतलाते हैँ?
वे भी माता के पगतल मेँ जन्नत की छटा दिखाते हैँ।
यह देखो सूली पर चढ़कर क्या कहता मरियम का बेटा।
हे ईश्वर इनको क्षमा करो जो आज बने हैँ जननेता।।
ये नहीँ जानते इनकी यह गल्ती क्या रंग दिखलायेगी।
इस शक्तिमंत्र से वञ्चित हो माँ की ममता घुट जायेगी॥
गोविन्द सिँह भी चण्डी का पूजन करते मिर जायेँगे।
शिव पत्नी से वर लेकर ही संघर्ष कमल खिल पायेँगे।
फिर बोलो माँ की पूजा का यह मंत्र कम्यूनल कैसे है?
माँ को महान कहने वाला शुभ तंत्र कम्यूनल कैसे है?
तुम केवल झूठी बातोँ पर जनमानस को भड़काते हो।
गुण्डोँ के बल पर नायक बन केवल विद्वेष लुटाते हो॥
लेकिन,जब यह घट फूटेगा।जब कोप बवंडर छूटेगा॥
जब प्रलय नटी उठ नाचेगी।भारत की जनता जागेगी॥
तब देश मेँ यदि रहना होगा।तो वंदेमातरम कहना होगा॥
धर्मेन्द्र

ना बांटो इस देश को हर

ना बांटो इस देश को हर एक भाषा के नाम पर
क्यूँ तोड़ते हो लोगों को विकास की आशा के नाम पर

मुस्लिम समाज या सिर्फ “वोट बैंक”…

Google Buzzमुस्लिम समाज या सिर्फ “वोट बैंक”…

आज मै जब भारतीय राजनीति को देखता हूँ तो “वोट बैंक” एक ऐसा शब्द है जिसकी आयु तो बहुत अधिक नहीं है लेकिन इसने प्रभाव बहुत बड़ा छोड़ा है, भारतीय राजनीति और पूरे भारतवर्ष पर. यह एक ऐसा शब्द है जिसने देश की दिशा और दशा दोनों को ही प्रभावित किया है. व्यक्तिगत तौर पर मै इस शब्द के साथ अपने को नहीं खड़ा कर पाता हूँ. यह वह शब्द है जो एक साथ मिलकर चलने वाले समाज के बीच में, अचानक से दूरियां पैदा कर देता है. किसी भी जाति, धर्म और समाज के साथ जब यह शब्द जुड़ जाता है तो भले ही हमको इसका तात्कालिक लाभ दिखता है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं है.

मै यहाँ पर अपने विचार व्यक्त करना कहूँगा, कि एक “वोट बैंक” बनकर भारतीय मुस्लिम समाज पर क्या असर हुआ है. इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि, भारत पर दो तरह के मुस्लिम शासकों ने राज किया है, एक वो जिन्होंने तलवार के बल पर अत्याचार के साथ सत्ता पर नियंत्रण किया और दूसरे वो जिन्होंने भारत को ही अपनी मादरे-वतन माना और भारत को मजबूत और ताकतवर बनाने के लिए काम किया. किसी भी और धर्म की तरह, भारत में मुस्लिम धर्म ने भी एक नयी विविधता भरी. मुग़ल काल में कला, साहित्य, भवन निर्माण और सड़क निर्माण एक नयी उचाईयों तक पहुचा. भारत के इस्लाम ने ही दुनिया को बेहतरीन योद्धा, शायर, गायक, कारीगर और जीवन को नई दिशा देने वाले सूफी संत दिए. टीपू सुल्तान, बहादुर शाह जफ़र, अशफाक उल्ला खान, अदुल हमीद जैसे न जाने कितने देशभक्तो ने देश के लिए अपनी जान देकर भारत का मान बढाया है.

वह मुस्लिम समाज जिसका इतना शानदार इतिहास रहा है आज तेजी से बढ़ाते भारतीय समाज में कही पिछडता चला जा रहा है. आज सरकारी या गैर सरकारी नौकरियों में मुस्लिम युवक और युवतियों की संख्या काफी कम है और इनकी बेरोज़गारी, गरीबी और अशिक्षा का स्तर खतरनाक हद तक बढ़ा हुआ है. लेकिन कोई भी राजनैतिक दल यह सोचने को तैयार नहीं है कि मुस्लिम समाज की यह हालत क्यों हो गई है और इस हालत से कैसे निपटा जाये. यह स्थति आज इस लिए हो रही है क्योंकि आज मुस्लिम लोग देश की जनता से अधिक एक “वोट बैंक” बन चुके है.

जैसा की किसी भी बैंक में जमा पैसे के साथ होता है कि फायदा तब होता है जब आप का जमा धन या तो सुरक्षित रहे या अधिक होता जाये. चुकी मुस्लिम समाज एक “वोट बैंक” बन चुका है तो राजनैतिक दलों को फायदा तभी होगा जब मुस्लिम समाज की समस्याओ को या तो वैसे ही रखा जाये या फिर उन्हें बढ़ने दिया जाये. कारण बहुत साफ़ है की अगर समस्याए हल हो गई तो “वोट बैंक” का क्या होगा जो चुनावो में नेताओ लिए एक मुश्त वोट की तरह आता है.

क्योंकि मुस्लिम एक “वोट बैंक” है, अपने पहले कार्यकाल में वर्त्तमान प्रधानमंत्री जी ने कुछ बड़े ही विवादित बयान दिए थे जैसेकि “देश के संसाधनों पर पहल अधिकार अल्पसंख्यको का है..” या “मै रात भर सो नहीं पाया.., (बंगलुरु के एक मुस्लिम डाक्टर के परिवार के बारे में सोच कर..)”. मेरी समझ से, इस तरह के बयानों से समाज में एक सनसनी तो फैलाई जा सकती है और “वोट बैंक” की सहानभूति भी प्राप्त करी जा सकती है, लेकिन इस तरह के बयानों से जमीनी स्तर पर पिछड़े मुसलमानों का भला नहीं किया जा सकता है. देश में मुसलमानों की स्थति जानने के लिए, सरकार ने एक “सच्चर कमेटी” भी बनायीं थी. जैसा की देश के सभी नीति निर्धारको को लगता है कि किसी भी वोट बैंक को लुभाना है तो आप तुरंत आरक्षण देने की बात शुरू कर दें. वह आरक्षण जो देश में ५० सालों से भी जयादा रहते हुए भी गरीब, दलित और शोषित लोगो का जीवन स्तर नहीं सुधर पाया, पता नहीं वो मुस्लिम समाज को कितने सालो में ऊपर ला पाता?

एक तरफ तो सरकार ये कहती है कि देश के सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं है और दूसरी तरफ “अफज़ल गुरु” जैसे अतंकवादियो को फ़ासी इस लिए नहीं देती कि कही ऐसा करने से उनका “वोट बैंक” ना खिसक जाये. मेरे लिए तो आतंक का ना तो कोई धर्म होता है और ना ही जाति. आज तक मै ऐसे किसी भी अपने मुसलमान दोस्त से नहीं मिला, जिसे “अफज़ल गुरु” को फासी देने से कोई परेशानी हो. हर देशभक्त अतंकवादियो को फासी देने के हक में है, लेकिन शायद सरकार के विश्वास में ही कही कमी है जो एक आतंकवादी को सारे मुसलमानों के साथ खड़ा कर देती है और समझती है कि “अफज़ल गुरु” को सारे देश के मुसलमानों का समर्थन है. सरकार को यह समझाना चाहिए कि “अफज़ल गुरु” की साजिशें जब हिन्दू और मुस्लमान को मारने में अंतर नहीं करती तो एक आम मुसलमान को किसी आतंकवादी के धर्म से क्या अंतर पड़ेगा.

मुस्लिम समाज के हित में, आज तक मैंने किसी भी राजनेता या मुस्लिम धर्मगुरु को मुसलमानों की असली समस्याओ को उजागर या हल करते हुए नहीं देखा है. कोई नहीं कह पता है अनियंत्रित जनसँख्या, गिरा हुआ शिक्षा का स्तर(खास तौर पर महिलाओ में) और कम उम्र में शादी, मुसलमानों को पीछे ले जाने वाले मूल कारण है. किसी भी मुस्लिम परिवार में अधिक जनसँख्या दबाव उनके बच्चो को न तो पर्याप्त भोजन दे पाता है और न ही अच्छी शिक्षा; लडकियों को घर के बाहर न निकालने की और लडको के साथ न पढ़ाने की मजबूरी मुस्लिम महिलाओ में अशिक्षा को बढ़ावा देती है; वही कम उम्र में शादी अपरिपक्व जोड़ो की जिन्दगी में नई दुशवारियाँ लाती है. कोई भी नेता यह सब नहीं कह पता क्योंकी ये बाते भले ही मुस्लिम समाज को दूरगामी फायदा पहुचती हो लेकिन एक “वोट बैंक” के हिसाब से ये बाते सुनने में अच्छी नहीं लगती है.

आज वही लोग मुस्लिम “वोट बैंक” के सबसे बड़े हितैषी बन जाते है जो सिर्फ तोड़ने की बात करते है न की जोड़ने की. यह कभी तो “राम मंदिर” के नाम पर होता है या कभी “गोधरा-गुजरात” के नाम पर. किसी को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि अयोध्या में मंदिर बनने या ना बनने से; ना तो मुस्लिम लोगो की गरीबी दूर होगी ना ही उनका जीवन स्तर ही सुधारेगा. मेरे विचार से “राम मंदिर” को जिस तरह से मुस्लिम अस्मिकता से जोड़ा गया है वह सरासर गलत है. आज अगर “अमेरिका” या “इज़राइल” “मक्का मदीना” पर आक्रमण कर के वह पर गिरिजाघर या कुछ और बनवा दे तो किसी भी मुस्लिम भाई की तरह मै भी इस बात का विरोध करूंगा. उसी तरह अगर किसी शासक ने हिन्दुओ के “भगवन राम” का मंदिर गिरा कर वहां पर मस्जिद बनाई है तो मै उम्मीद करता हूँ कि आम मुस्लमान भाई इस बात को समझेगे कि ये गलत है. इस संवेदनशील मुद्दे को सुलझाने के लिए कई शांतिपूर्ण हल निकल सकते है, लेकिन इस मुद्दे को जिन्दा रखने से ही “वोट बैंक” मजबूत रहता है यह कभी मुस्लिम वोट बैंक होता है और कभी हिन्दू वोट बैंक.

देश को यह समझाना होगा कि “इतिहास” नहीं बदला जा सकता है लेकिन “आज” जरूर बदला जा सकता है, और यही समय है जब भारतवर्ष दुनिया को दिखा दे कि इस देश में हिन्दू और मुस्लमान भाई की तरह रहते है. मुस्लिम भाइयो से यही उम्मीद करूंगा की वो अपने भाग्य के खुद मालिक बने, ना की कोई और. वो इस बात को समझे कि वो कैसे अपना, अपने परिवार और अपने बच्चो को बेहतर जिंदगी और अपने देश की प्रगति के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकते है.

इन पंक्तियों के साथ ख़तम करना चाहूँगा की..

हर इबादतगाह में एक वो ही तो बसता है, एक हम ही हैं जो फर्क किये जाते हैं…

जय हिंद.

अयोध्या विवाद का घटनाक्रम

अयोध्या विवाद का घटनाक्रम

अयोध्या विवाद का घटनाक्रम
हिन्दू और मुस्लिमों के बीच तनाव की अहम वजह है हिंदुओं का दावा जिसमें कहा जा रहा है कि यह स्थान भगवान श्रीराम की जन्म भूमि है,वहीं मुसलमानों का कहना है कि इसी स्थान पर बाबरी मस्जिद थी।
भगवान श्रीराम हिंदुओं के आराध्यदेव हैं। अयोध्या उनकी जन्मभूमि है। अयोध्या का विवाद, रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के दावे के बीच घूम रहा है। इस अहम मुद्दे से देश की राजनीति एक लंबे अरसे से प्रभावित हुई है। मामले-मुक़दमे अदालतों में चल रहे हैं।
कोर्ट में पिछले छह दशकों से इस बात का मुकदमा चल रहा है कि राम मंदिर या बाबरी मस्जिद का मालिकाना हक किसका है। वह हिन्दू का है या मुस्लिम समुदाय का है। तमाम दावे पेश किए गए, तमाम जिरह हुई।
अपने दावे के पक्ष में हिंदुओं ने 54 और मुस्लिम पक्ष ने 34 गवाह पेश किए। इनमे धार्मिक विद्वान, इतिहासकार और पुरातत्व जानकार शामिल हैं।
एक ताजुब्ब भी है मुस्लिम पक्ष ने अपने समर्थन में 12 हिंदुओं को भी गवाह के तौर पर पेश किया। दोनों पक्षों ने लगभग 15 हज़ार पेज दस्तावेज़ी सबूत पेश किए। कई पुस्तकें भी अदालत में पेश की गईं।
फैसले की घड़ी अब नजदीक आ गई है। 24 सितम्बर का दिन मुकरर्र हुआ है देश के भाग्य का। कौन जीतेगा, कौन हारेगा। दिल थामे बैठे है हमारे हिन्दू और मुस्लिम भाई।

इस इतिहास की बानगी पर एक नज़र... 24 सितम्बर 2010: मालिकाना हक पर फैसला दिया जाएगा।
जुलाई, 2010: रामजन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई पूरी।
मई, 2010: बाबरी विध्वंस के मामले में लालकृष्ण आडवाणी और अन्य नेताओं के ख़िलाफ़ आपराधिक मुक़दमा चलाने को लेकर दायर पुनरीक्षण याचिका हाईकोर्ट में ख़ारिज।
24 नवंबर, 2009: संसद के दोनों सदनों में लिब्रहान आयोग की रपट पेश। अटल बिहारी वाजपेयी और मीडिया को दोषी ठहराया। नरसिंह राव को साफ-साफ बचा लिया।
7 जुलाई, 2009: उत्तरप्रदेश सरकार ने एक हलफ़नामे में स्वीकार किया कि अयोध्या विवाद से जुड़ी 23 महत्वपूर्ण फाइलें सचिवालय से गायब हो गई हैं।
30 जून 2009: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 17 वर्षों के बाद लिब्रहान आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी। इस आयोग का गठन बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की जांच के लिए गठित किया गया था।
19 मार्च 2007:  राहुल गाँधी ने चुनावी दौरे में कहा कि अगर नेहरू-गांधी परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री होता तो बाबरी मस्जिद न गिरी होती।
जुलाई 2006: सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया।
28 जुलाई 2005: लालकृष्ण आडवाणी 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में गुरूवार को रायबरेली की अदालत में पेश हुए।अदालत ने लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ आरोप तय किए।
जनवरी 2005: लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या मामले में अदालत में तलब किया गया।
जुलाई 2004: शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे ने सुझाव दिया कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंगल पांडे के नाम पर कोई राष्ट्रीय स्मारक बना दिया जाए।
अप्रैल 2004: आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा।
अगस्त 2003: भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए।
जून 2003: कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती ने मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता की और उम्मीद जताई लेकिन कुछ नहीं हुआ।
मई 2003: 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ सीबीआई ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किए।
अप्रैल 2003: इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने विवादित स्थल की खुदाई शुरू की, जून महीने तक खुदाई चलने के बाद आई रिपोर्ट में कहा गया है कि उसमें मंदिर से मिलते जुलते अवशेष मिले हैं।
मार्च 2003: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया।
जनवरी 2003: विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर की हकीकत पता लगाने के लिए रेडियो तरंगों का प्रयोग किया गया। पर कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला।
22 जून, 2002: विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर निर्माण के लिए विवादित भूमि के हस्तांतरण की माँग उठाई।
13 मार्च, 2002: सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या पर अपना निर्णय देते हुए कहाकि यथास्थिति बरक़रार रखी जाएगी। शिलापूजन नहीं होगी।
जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी  ने अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए अयोध्या समिति का गठन की।
2001: राम मंदिर निर्माण जरूर बनाएंगे। विश्व हिंदू परिषद ने इस संकल्प को एक बार फिर दोहराया।
1998: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई।
1992: 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया। इसमें विहिप, भाजपा व शिव सेना के कार्यकर्ता शामिल थे। सांप्रदायिक दंगे हुए। 2000 से अधिक लोग मारे गए।
1990: बाबरी मस्जिद को विहिप ने नुकसान पहुंचाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने विवाद सुलझाने के प्रयास किए।
1989: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल के नज़दीक राम मंदिर की नींव रखी।
1986: बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन। फैजाबाद सेशन कोर्ट ने विवादित मस्जिद के दरवाज़े पर से ताला खोलने का आदेश दिया। मुसलमानों ने विरोध किया।
1984: विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में एक समिति का गठन। जिसका मुख्य उद्देश्य राम जन्मभूमि को मुक्त करना था। बाद में इस अभियान की जिम्मेदारी भाजपा के एक प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी पास आ गईं।
1949: दोनों पक्षों ने अदालत में मुकदमा दायर किया। सरकार ने इस स्थल को विवादित घोषित कर दिया और ताला लगा दिया।
1859: इस विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन शासक ने विवादित जगह को चारों तरफ से घेर दिया। अब मुसलमान विवादित परिसर के भीतर इबादत और हिन्दू बाहर प्रार्थना करने लगे।
1853:  यह वह वर्ष था जब अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद का मुद्दा बना। और पहली बार इस स्थल के पास सांप्रदायिक दंगे हुए।
1528: हिन्दूओं के आराध्य देवता भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनवाई गई। बताया जाता है कि इसे मुग़ल सम्राट बाबर  ने बनवाया था।

25 सितंबर, 2010

राम शाम
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भाजपा का पाकिस्तान प्रेम कियो...!
आईपीएल विवाद पर भाजपा पाकिस्तान से संबंधों में खटास न लाने की दुहाई दे रही है. इस पर सलीम अख्तर सिद्दीकी भाजपा पर तीखे सवाल करते हैं. सिद्दीकी मानते हैं कि जो पाकिस्तान भारत का दुश्मन नंबर एक है, फिर भाजपा उससे दोस्ती बनाये रखने की वकालत क्यों करती है? आखिर भाजपा के इस पाकिस्तान प्रेम का राज क्या है?
1965 और 1971 की लड़ाई के बाद से ही पाकिस्तान हमारा दुश्मन रहा है। 1971 की जंग के बाद से ही आने-जाने के रास्ते बंद थे। 1978 में दोनों देशों के बीच आगमन का सिलसिला शुरु हुआ था इसी दौर में क्रिकेट को दोनों देशों के बीच ताल्लुकात बेहतर करने का जरिया माना गया था। लेकिन दोनों देशों के बीच सास-बहु सरीखी नोंकझोंक कभी बंद नहीं हुई। यह पता होने के बाद भी कि पाकिस्तान के तानाशाह जनरल जिया-उल-हक पंजाब के आतंकवादियों को शह दे रहे हैं, पाकिस्तान से सम्बन्ध बने रहे। यहां तक हुआ कि क्रिकेट मैच देखने जनरल साहब एक बार जयपुर तशरीफ लाए थे। एक बार दोनों मुल्कों ने मिलकर क्रिकेट का वर्ल्ड कप का भी आयोजन किया था। दिसम्बर 2001 में संसद पर हमले के बाद एक बार फिर दोनों मुल्कों की फौजें आमने-सामने आ गयीं थीं, जो बिना लड़े ही बैरकों में वापस चली गयी थीं। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी साहब बतौर प्रधानमंत्री लाहौर और दिल्ली के बीच बस चलवा चुके थे। एक बार लगा था कि दोनों मुल्कों के बीच मधुर सम्बन्ध कायम हो जाएंगे, लेकिन 26/11 के बाद दोनों देशों के बीच फिर से तनातनी चल रही है।
आईपीएल में पाकिस्तानी क्रिकेट खिलाड़ियों को नहीं लिया गया। इस पर पाकिस्तान में तीखी प्रतिक्रिया हुई। आईपीएल के कर्ता-धर्ताओं का तर्क है कि 26/11 के कारण पाकिस्तान के खिलाडियों को नहीं लिया गया हैं। यदि पाकिस्तान के खिलाड़ियों को नीलामी से बाहर ही रखना था तो उन्हें भारत सरकार ने वीजा ही क्यों जारी किया था? पाकिस्तान 20-20 क्रिकेट का वर्ल्ड चैम्पियन है। ऐसे मे पाकिस्तानी खिलाड़ियों को आईपीएल से बाहर रखने पर आईपीएल के रोमांच में न सिर्फ कमी आएगी बल्कि 26/11 के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जो खाई पैदा हुई है, उसमें बढ़ोतरी होगी। समझ में यह नहीं आता कि आतंकवाद के बहाने क्रिकेट पर क्यों चोट की जा रही है। क्या पाकिस्तान को क्रिकेट से अलग करके आतंकवाद को खत्म किया जा सकता है?
आईपीएल में पाकिस्तान के खिलाड़ियों का बहिष्कार आतंकवादियों के मंसूबे पूरे करने में सहायता करने के बराबर है। क्योंकि आतंकवादी और उनके आका हर हाल में यह चाहते हैं कि दोनों देशों के बीच एक बार और जंग हो जाए। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का कहना है कि वह इस बात की गारंटी नहीं दे सकते हैं कि आतंकवादी फिर कभी भारत में कोई आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं देंगे। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के इस बयान का अर्थ यह है कि पाकिस्तान सरकार का भी आतंकवादियों पर कोई बस नहीं रहा है। इसको ऐसे ही समझिए जैसे हमारे कृषि मंत्री यह बयान दें कि मुझे नहीं पता कि दें कि चीनी कब सस्ती होगी। कभी-कभी तो लगता है कि आतंकवाद की आड़ में दोनों देशों के साथ कोई ऐसी अन्तरराष्ट्रीय साजिश की जा रही है, जिससे दोनों देश न तो दोस्त ही बनें और न ही दुश्मन।       
एक सवाल और है, जो बार-बारे जेहन में आता है, आखिर भाजपा को पाकिस्तान से ताल्लुक बेहतर रखने में इतनी दिलचस्पी क्यों रहती है? आखिर भाजपा नेताओं का पाकिस्तान प्रेम का राज क्या है? विपक्ष में रहते हुए उन्होंने हमेशा ही पाकिस्तान को पानी पी-पीकर कोसा। यह भी बार-बार मांग की गयी कि पाकिस्तान में चल रहे आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को भारतीय फौज पाकिस्तान में घुसकर तबाह करे। लेकिन जब भी भाजपा के लोग सत्ता में रहे, उन्होंने पाकिस्तान में घुसकर आतंकी ट्रेनिंग कैम्पों को तबाह करने के बजाय पाकिस्तान से दोस्ती करने की कवायद की है। 1978 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने ही दोनों देशों के बीच बंद पड़े रास्तें को खुलवाया था। इन्हीं अटल बिहारी वाजपेयी ने एक तानाशाह जनरल मुर्शरफ को आगरा बुलाया और लाहौर और दिल्ली के बीच चलने वाली बस को भी हरी झंडी भी अटल बिहार वाजपेयी ने ही दिखाई थी। लालकृष्ण आडवाणी साहब कराची में जिनाह की मजार पर मत्था टेकते हैं और जिनाह को सैक्यूलर होने का सर्टीफिकेट दे आते हैं।
सच तो यह है कि पाकिस्तान के साथ दुश्मनी ही निभानी चाहिए। दोनों को अपने-अपने दूतावास बंद कर देने चाहिए। यदि समझौता एक्सप्रेस से पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में आते हैं और भारत से कुछ लोग भारत के खिलाफ जासूसी करने की ट्रेनिंग लेने पाकिस्तान जाते हैं तो समझौता एक्सप्रेस को बंद कर देना ही मुनासिब होगा। दोनों देशों की एक कदम आगे और एक कदम पीछे की नीति समझ में नहीं आती है। एक बार तय करें कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन है या दोस्त?