21 नवंबर, 2010

देश की सबसे बड़ी समस्यासमस्या की जड़ कहाँ है ?

देश की सबसे बड़ी समस्यासमस्या की जड़ कहाँ है ?
समस्या की जड़ तक पहुँचने के लिए कुछ पहलुओं पर गौर करना पड़ेगा और उनपर गौर करते हुए हमें अपने आप पता चल जायेगा कि समस्या की जड़ कहाँ छुपी हुयी है | बस अपने दिमाग के दरवाज़ों को थोडा खुला रखना पड़ेगा
देश की सबसे बड़ी समस्या:समस्या की जड़ कहाँ है ?
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दे
आज देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है ? ये एक सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है | कोई गरीबी, कोई आतंक , कोई भ्रष्टाचार ,कोई बेरोजगारी तो कोई आर्थिक समस्या को कहेगा जितने लोग होंगे सब का अपना -अपना नजरिया है मगर अगर ध्यान से देखा जाये कि देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है तभी उसका हल खोजा जा सकेगा | आज देश ना जाने कितनी ही समस्याओं से जूझ रहा है मगर मुद्दा एक ही सबसे ऊपर है कि जड़ कहाँ है समस्या की ?
इस समस्या की जड़ बहुत गहरी हैं | देश आज़ाद हुआ तो सोचा जैसा हम चाहेंगे देश को वैसा बनायेंगे --------एक खुशहाल देश . मगर क्या देश खुशहाल है ,क्या सब लोग खुशहाल हैं ?एक ही जवाब आएगा नही ----------ऐसा क्यूँ हुआ ? ऐसा इसलिए हुआ कि सबने सिर्फ अपना पेट भरने की सोची , किसी ने भी देश के हित को सर्वोपरि नही रखा | इस परंपरा को पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रखा गया | कोई भी नेता हो या कोई भी प्रधानमंत्री किसी ने भी इस समस्या को देखना तो दूर हाथ लगाना नही चाहा क्यूंकि सबको सिर्फ अपनी -अपनी कुर्सी प्यारी थी |
आज देश का हर नेता सिर्फ अपने लिए जी रहा है ----------दावे तो हर कोई करता है मगर क्या कभी किसी ने भी उन दावों को पूरा किया आज तक?जनता को कैसे बेवक़ूफ़ बनाया जा सकता है इसके रोज नए- नए उपाय खोजे जाते रहे | मगर देशवासी एकजुट होकर कैसे रहें इसके बारे में किसी ने नही सोचा बल्कि ये सोचा गया कि कैसे इनके प्यार मोहब्बत , दोस्ती और भाईचारे को ख़तम किया जाये ताकि हम अपनी रोटी सेंक सकें. कैसे नफरत की दीवार दिलों में खिंची जाये | कैसे इतना आतंक फैलाया जाये कि इंसान एक -दूसरे को देखकर भी डरने लगे | और ये सब करने में माहिर हमारे नेताओं ने देश को आज कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया | बेशक २१ वी सदी में जी रहे हैं मगर आज भी हम अपने स्वार्थों के कारण बहुत पीछे हैं वर्ना आज देश यूँ आतंक की समस्या से ना जूझ रहा होता और ना ही कोई कसाब या अफ़ज़ल गुरु देश का दामाद बन ऐश ना कर रहा होता और ना ही उस पर इतना करोड़ों रुपया खर्च हो रहा होता. क्या ये पैसा जनता का नही है? आज जनता दुखी है इस बात से कि एक आतंकवादी जिसने ना जाने कितने मासूमों की जान ली ,एक आतंकवादी जिसने देश की संसद पर हमला किया --------ऐसे- ऐसे आतंकवादी आज भी देश की शान बने हुए हैं उन्हें अख़बारों की सुर्ख़ियों में सबसे पहले जगह मिलती है मगर वो जिसने देश की खातिर जान कुर्बान की उसका नाम भी कहीं छोटे आर्टिकल में छाप दिया जाता है , और उसके परिवार पर क्या गुजरी ,वो किस हाल में जी रहे हैं ये सब जाने बिना सिर्फ श्रद्धांजलि देकर और २ मिनट का मौन रखकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है | आज जनता दुखी है अपने देश के कर्णधारों की ऐसी हरकतों से | आज ये सब ना होता अगर आतंकवादियों को सज़ा -ए-मौत मिल गयी होती | शायद जनता की दुखती रग पर कुछ तो मरहम लग गया होता | पूछो उस इंसान से जिसने इन हमलों में अपना बेटा खोया ,जिसने अपना पति खोया या जिसने अपना पिता खोया ---------क्या उनकी भरपाई कभी हो सकती है? मरता सिर्फ एक शख्स है मगर जिंदगियां ना जाने कितनी बर्बाद हो जाती हैं | कभी इस दर्द को समझना चाहा किसी ने भी .............नही क्यूंकि उनका अपना इनमें शामिल नही था अगर होता तो अब तक हवाओं का रुख ही बदल गया होता | क्या किसी मुआवजे से किसी के दुःख की भरपाई हो सकती है ?
अब देखा जाये तो अमेरिका में भी आतंकवादी हमला हुआ मगर उसने एक ही बार में ऐसा एक्शन लिया कि क्या कभी हमने दोबारा सुना कि ऐसा कुछ हुआ हो जबकि हमारे देश में आये दिन ऐसी घटनाएं होती रहती हैं ............क्यूँ? एक ही कारण है ---------आतंकवादी जानते हैं कि यहाँ हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ेगा -------------उन्हें इस देश की कमजोरी पता है | आज यदि सद्दाम हुसैन की तरह आतंवादियों को फांसी पर लटकाया गया होता तो फिर दोबारा ऐसा करने की किसी में हिम्मत ही ना होती |
मगर जहाँ सब तरफ भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार व्याप्त हो तो सब कुछ सभव है | कभी देश को धर्म के नाम पर बांटते हैं तो कभी जाति के नाम पर | अब देखा जाये तो बाबरी मस्जिद कांड सिर्फ कुछ लोगो के दिल की उपज थी वरना इतना सब कुछ ना होता | लोगो को धर्म के नाम पर बाँट दिया और आपस में लडवा दिया और अब ६ दिसम्बर को उसे याद किया जाता है और पूरे ३६४ दिन भुला दिया जाता है ...............क्या समझा है इस देश के नेताओं ने कि जनता इतनी बेवक़ूफ़ है ? क्या वो नही समझती कि कुछ नेता सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए देश के लोगों के दिलों में नफरत के बीज बो रहे हैं-------------आज आम आदमी कैसे अपने लिए २ वक़्त की रोटी का जुगाड़ करता है , कैसे ज़िन्दगी जीता है ये सिर्फ वो ही समझ सकता है जो नेता नही है या ऊंचे रसूख वाला नही है | आम आदमी का दर्द आम आदमी ही समझ सकता है | क्या आम आदमी ऐसा चाहता है तो जवाब आएगा ---------नही | आम आदमी सिर्फ शांति से जीना चाहता है और दो वक़्त की रोटी सुकून से खाना चाहता है | मगर जब देश ऐसे हालातों से गुजरता है तब वो ही आम आदमी कसमसा जाता है अपनी बेबसी पर क्यूंकि उसी ने तो इन नेताओं को ये कुर्सी दिलवाई थी मगर बाद में वो खुद को ठगा हुया महसूस करता है ...........कोई सोचो ऐसे में वो क्या करे |
देश पहले भी बंटा था आज भी बँट रहा है कुछ लोगो के स्वार्थों की वजह से | इसी कारण दूसरे हम पर २०० वर्ष तक राज कर गए क्यूंकि कहने को ही हमारी एकता में ही अखंडता है जबकि एक तो हम कभी हुए ही नही जब हुए तो इतिहास बना. जैसे जब देश आज़ाद हुआ तो वो एकता की शक्ति पर ही हुआ सबके संगठित प्रयासों से ही हुआ | मगर आज क्या हो रहा है ..........आज फिर देश को बांटा जा रहा है .................आज फिर इसके टुकड़े किये जा रहे हैं कभी भाषा के नाम पर तो कभी जाति के नाम पर..............क्या दुनिया इतना नही समझती कि एक आम भारतीय नागरिक ये अच्छे से जानता है कि वो सबसे पहले हिन्दुस्तानी है उसके बाद उसकी जाति,भाषा और धर्म आते हैं .............फिर भी उनके दिलों में ये नफरत के बीज बोये जा रहे हैं सिर्फ कुछ लोगों द्वारा अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए...............कैसे किसी की इतनी हिम्मत हो जाये अगर देश के नेता आज भी उतने ही उच्च आदर्शों और चरित्र वाले हो | देश के फिर टुकड़े करने को तैयार बैठे हैं कभी तेलंगाना के नाम पर तो कभी भाषा के नाम पर ..........आखिर कब तक सिर्फ अपनी स्वार्थों की बलिवेदी पर ये नेता देश को बलि चढाते रहेंगे...........कभी कहा जाता है कि एक प्रान्त का आदमी दूसरे प्रान्त में काम नही कर सकता जबकि देश में कहीं भी आने- जाने और काम करने की स्वतंत्रता है , कोई अगर हिंदी भाषा बोलता है तो उसे गलत करार दे दिया जाता है जबकि हर भारतीय सबसे पहले हिन्दुस्तानी है और हिंदी हमारी मातृभाषा , ऐसे में अगर वो हिंदी बोलता है तो कुछ लोगों द्वारा इतना बवाल क्यूँ खड़ा कर दिया जाता है जबकि सब जानते हैं कि ये क्यूँ हो रहा है सिर्फ अपनी सत्ता का प्रचार प्रसार करने के लिए | क्या इससे ये सिद्ध नही होता कि जो खुद को देश का कर्णधार कहते हैं वो ही देश के सबसे बड़े दुश्मन हैं जो सिर्फ भाषा के नाम पर देश और उसके नागरिकों के संवैधानिक अधिकार पर डाका डाल रहे हैं | क्या सिर्फ एक जाति का इंसान ही एक जगह रह सकता है , क्या ये उसका अधिकार नही है कि वो कहीं भी रहे ..........मगर सिर्फ अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए उन लोगों का सरे आम क़त्ल कर दिया जाता है ..............क्या ये देश की समस्या नही है? कभी कुछ स्वार्थी लोगों की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए राज्यों के और छोटे- छोटे टुकड़े किये जा रहे हैं .........क्या इससे देश उन्नत होगा?क्या इससे देश की समस्या सुलझ जाएगी या कुछ लोग अपने स्वार्थों की वेदी पर देश को बाँट रहे हैं ये समझ नही आता | आज देश की समस्या इन मुद्दों से हटकर उस गंभीर मुद्दे की है जिसके कारण देश बर्बादी के गर्त में जा रहा है |
एक तरफ ये समस्याएं हैं तो दूसरी तरफ दिन प्रतिदिन महंगाई सुरसा के मुख की तरह बढती ही जा रही है ..........क्या ऐसे हालातों में जहाँ दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ इंसान के लिए मुश्किल हो रहा हो वहां ये खेल करवाने कहाँ तक उचित हैं? अपने देश की समस्याओं से तो सरकार निपट नही पा रही मगर राष्ट्रमंडल खेल इतने जरूरी कर दिए हैं कि उनकी वजह से गरीब और गरीब होता जा रहा है , वो बेचारा जिसकी रोटी में प्याज और दाल जैसी सबसे सस्ती चीजें होती थी वो ही चीजें आज वो खाने कि छोड़ो देख भी नही सकता ----------तो क्या ये उसकी रोटी पर डाका नही है , सिर्फ सारे संसार में अपना नाम रोशन करने के लिए गरीबों पर अन्याय नही है ? क्या राष्ट्रमंडल खेल इतने जरूरी हैं ? मगर नहीं सरकार हो या नेता कोई भी इस बारे में नही सोच रहा |
मस्या सभी एक दूसरे से जुडी हुई हैं. अब एक छोटा सा उदहारण देखिये ---------राहुल गाँधी ने संसद में कलावती की गरीबी का किस्सा उठाया , सबको बहुत ही अच्छा लगा कि कोई तो नेता ऐसा है जो इनके बारे में सोचता है मगर क्या उसका जीवन बदला..............क्या उसकी खोज खबर ली गयी ............ना जाने कितनी कलावातियाँ इनसे भी बदतर हालातों में जी रही हैं ...............कलावती को चुनाव लड़ने के लिए खड़ा नही होने दिया गया क्यूंकि एक आम इन्सान जो जनता में से आएगा वो उनका दुखदर्द अच्छे से समझ सकेगा ये बात हर कोई जानता है तो ऐसे में यदि कलावती चुनाव जीत जाती तो देश का नक्शा बदलने की कोशिश करती जो कुछ खास किस्म के नेताओं को रास ना आता इसलिए उस पर चुनाव से नाम वापस लेने के लिए दबाब डाला गया और आख़िरकार एक बार फिर झूठ जीत गया और सत्य को अपना मुंह छुपाना पड़ा .............तो ज़रा सोचिये हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या कौन हैं?
राहुल जी इस तरह जगह- जगह जाकर आम आदमी से मिलकर उनका दुःख दर्द जानकर आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं मगर क्या इसके बाद आपने कभी जानने की कोशिश की कि उस इंसान की आगे की ज़िन्दगी अब कैसी गुजर रही है , जो वादे आपने उनसे किये क्या वो सब पूरे हुए , नहीं ना , फिर ऐसे जाने या मिलने से क्या फायदा , ऐसे अपनी सहानुभूति दिखाने का तब तक कोई फायदा नही जब तक आप दोबारा बिना किसी को बताये वहां जाएँ और फिर उन लोगों के हालात देखें ---------पता लगाये कि आपके दिशानिर्देशों का पालन हुआ या नही तब जाकर थोडा सुधार आ पायेगा , तभी आज के नेता और अधिकारीगण डरेंगे और सही काम की ओर अग्रसर होंगे वरना जनता का जो हाल पहले था आपके जाने से वो ही हाल बाद में ही रहता है तो ऐसे जाने या ना जाने का कोई फायदा नही तब तक जब तक आपके वादों को अमली जामा ना पहनाया जा सके और यदि हर नेता इसी तरह का रास्ता अख्तियार करने लगे तो देश को सभी समस्याओं से मुक्ति मिल जाये मगर ऐसा होना संभव नही है क्यूंकि उससे जनता का पेट तो भर जाएगा मगर नेताओं का क्या होगा? ये एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है |
आम जनता तो पहले भी वैसे ही जी रही थी जैसे आज जी रही है .............वो पहले भी हालातों का शिकार होती रही है और आगे भी होती रहेगी ...........जब तक जनता खुद आगे नही बढती , अपने फैसले स्वयं नही लेती तब तक ना तो उनका खुद का जीवन सुधरेगा ना समाज के हालात सुधरेंगे और ना ही देश के हालात सुधरेंगे.जब तक हम अपने घरेलू हालातों को नही सुधारेंगे तब तक रामराज्य नही आ सकता , देश प्रगति के पथ पर नही चल सकता , फिर कोई जयचंद इस देश की बलि चढ़ा देगा |
आखिर कब तक हम देश और खुद को बर्बाद होने देंगे...........क्या हम में से फिर कोई झाँसी की रानी की तरह एक बार फिर साहस का परिचय ना देगा , क्या फिर भगत सिंह , आज़ाद जैसे वीर आगे नही आयेंगे . अब जनता को खुद आगे आना होगा ..........समस्या की जड़ को उखाड़ फेंकना होगा तभी देश अपनी सबसे बड़ी समस्या से छुटकारा पा सकेगा |
अब नेतृत्व की कमान जनता को खुद अपने हाथों में लेनी पड़ेगी ना कि देश के ऐसे कर्णधारों पर निर्भर करके खुद को अंधकार के गर्त में धकेलना होगा |
सबके संगठित प्रयासों से ही एक नव भारत का निर्माण करना होगा तभी सबसे बड़ी समस्या से जुडी छोटी-छोटी समस्याओं से छुटकारा मिल पायेगा |
कहाँ तक गिनवाया जाये ..................हर काले धंधे में , हर घोटाले में ,हर भ्रष्टाचार में कोई ना कोई उजले कपडे वाला ही शामिल मिलेगा | जिस दिन ऐसे नेताओं से छुटकारा मिलेगा वो दिन भारत के इतिहास का स्वर्णिम दिन होगा |
तो देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है ये तो अब तक सभी समझ चुके होंगे ...............?

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